आपकी कमाई चाहे कितनी भी हो, पर किसीं की भूक ना मिटा सके, तो कागझ के नोट किस काम के ? और चाहे कितनी ही शराफत से जिना सिख लो, पर किसीं अपने को सहारा ना दे सके तो जिंदगी किस काम की ? भले आप बुरे ही सही.. पर किसिका भला सोचना ये भी तो एक इबादत हैं !
आपकी कमाई चाहे कितनी भी हो, पर किसीं की भूक ना मिटा सके, तो कागझ के नोट किस काम के ? और चाहे कितनी ही शराफत से जिना सिख लो, पर किसीं अपने को सहारा ना दे सके तो जिंदगी किस काम की ? भले आप बुरे ही सही.. पर किसिका भला सोचना ये भी तो एक इबादत हैं !